न मम : यह केवल मेरा नहीं है।

न मम 

यह केवल मेरा नहीं है। (डिस्क्लेमर)
मैं न ऋषि हूं, न मेरी बातें कोई बिलकुल मौलिक हैं। अनादि से अनंत के बीच के प्रवाह में बह रहा एक जीव मैं भी हूं। कुछ चेतन, कुछ अचेतन, अज्ञान एवं ज्ञान से भरा-पूरा। मैं काफी दिनों पहले से ही सहज सनातन की कथा कह रहा हूं। एक जन्मजात कथा वाचक, अर्थात जब से बोलना सीखा तभी से मंचासीन हूं। कभी तोतली बोली में, कभी रोते हुए, कभी गरजते और कभी अपनी मूर्खता तथा ज्ञान की विविधता तथा अनंतता पर हंसते हुए।
यहां सनातन धर्म के बारे में बहुत सारी कथाएं आपको मिलेंगी। कुछ राजा-रानी की कथा की तरह, कुछ मेरी आपकी व्यथा की तरह, कभी संवाद, कभी सत्संग तो कभी उपनिषद शैली में। कभी रुक कर तो कभी लगातार। टिप्पणी, चित्र, प्रमाण, संदेश, सभी मिलेंगे क्योंकि यह केवल एक अकेली मेरी कथा नहीं है। स्वांतः सुखाय तो है ही, साथ ही पसंद करने वालों के सुख के लिए भी है। पसंद न आए तो भी कोई बात नहीं। कथा का अभिप्राय यहां केवल  घटना क्रमों के विवरण वाली एक प्रकार की ही कथा नहीं है। यहां कथाओं में भी विविधता मिलेगी।
मैं किसी राष्ट्र को बनाने-बिगाड़ने की न क्षमता रखता हूं, न ही यह कथा केवल भारत तक के लिए सीमित है। नेपाल, लंका, चीन, वर्मा, मलेशिया वगैरह का इस पर पूरा हक है। पाकिस्तान के लोग भी हक रख सकते हैं। जैन तो वैदिकों के समान पुराने हैं, बौद्ध वगैरह भी इस कथा के अंतर्गत हैं। मैं सबका नाम ले भी नहीं सकता क्योंकि मुझे सबके बारे में पता ही नहीं है।
इस प्रकार इस सहज सनातन कथा पर आपका भी उतना ही हक है, जितना मेरा। आप भी इसमें जोड़ सकते हैं। इससे जुड़ सकते हैं। बस अनादि से अनंत के बीच के प्रवाह तथा विविधता को स्वीकार करना जरूरी है। यहां केवलवाद और किसी एक की सर्वश्रेष्ठता के युद्ध के लिए जगह नहीं है। कुछ कथाएं अभी अति संक्षिप्त रूप में हुई हैं, उनका विस्तार होना है। कुछ अधूरी हैं, उन्हें पूरा करना है। यहां बिखरी सामग्री को एकत्र करने का प्रयास है। इस कमी और असुविधा के लिए मैं विवश हूं। 

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